ଜନମାଷ୍ଟମୀ 2022: ଯେତେବେଳେ ଦୁଷ୍ଟ କାନହା ଗୋପୀମାନଙ୍କ ପୋଷାକ ଚୋରି କଲା, ଏହି ବାର୍ତ୍ତା ଦେଲା |
ଦ୍ୱପର ଯୁଗରେ ଜନ୍ମିତ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ପିଲାଦିନରୁ ଅନେକ ସମୟ ଦେଖାଇବା ଆରମ୍ଭ କରିଥିଲେ | ଏହି ବାଲ୍ ଲିଲାସ୍ ବିଷୟରେ ଉଲ୍ଲେଖ ଅନେକ ପୁସ୍ତକ ଏବଂ ପୁରାଣରେ ଦେଖିବାକୁ ମିଳେ | ଯଶୋଦା ମାୟାଙ୍କ କୋଳରେ ବସୁଥିବା କୃଷ୍ଣ ଗୋପୀ ଏବଂ ଗୋରୁ କେଶ ସହିତ ଅନେକ କେଶ ଲୀଲା ପ୍ରଦର୍ଶନ କରିଥିଲେ | ଯାହା ମାଧ୍ୟମରେ ସେ ବାର୍ତ୍ତା ମଧ୍ୟ ଦେଇଥିଲେ | ଏହି ଭୋଜିଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରୁ ଗୋଟିଏ ହେଉଛି କୃଷ୍ଣ ଗୋପୀମାନଙ୍କ ପୋଷାକ ଚୋରି କରିବା | ଦୁଷ୍ଟ କୃଷ୍ଣ ଗୋପୀମାନଙ୍କ ପୋଷାକ ଚୋରି କରି ସେମାନଙ୍କୁ ଜ୍ଞାନ ଦେଲେ। ଆସନ୍ତୁ ଜାଣିବା କୃଷ୍ଣ କାହିଁକି ଗୋପୀମାନଙ୍କ ପୋଷାକ ଚୋରି କଲେ?
ପିଲାଦିନର ଅନ୍ୟତମ ସମୟ ହେଉଛି ଗୋପୀମାନଙ୍କ ପୋଷାକ ଚୋରି କରିବା | ଏହି କାହାଣୀର ପ୍ରସଙ୍ଗ ପଦ୍ମ ପୁରାଣରେ ଦେଖିବାକୁ ମିଳେ | କାହାଣୀଟି ଏହିପରି ଚାଲିଥାଏ ଯେ ଦ daily ନନ୍ଦିନ କାର୍ଯ୍ୟ ଭାବରେ ଗୋପୀମାନେ ଦିନେ ପୋଖରୀରେ ଗାଧୋଇବାକୁ ଯାଇ ପୋଖରୀ ପାଣିରେ ଗାଧୋଇବାକୁ ଯାଇଥିଲେ | ଭଗବାନ କୃଷ୍ଣ ଗଛ ଉପରେ ବସିଥିବା ସମସ୍ତ ଦୃଶ୍ୟକୁ ଦେଖୁଥିଲେ। ଯେତେବେଳେ ଗୋପୀମାନେ ଗାଧୋଇବାରେ ବ୍ୟସ୍ତ ହୁଅନ୍ତି | ତା’ପରେ କୃଷ୍ଣ ଗୁପ୍ତଚରମାନଙ୍କ ପୋଷାକ ଲୁଚାଇ ଲୁଚାଇଲେ |
ଯେତେବେଳେ ଗୋପୀମାନେ ସ୍ନାନରୁ ଅବସର ନେଇ ନିଜ ପୋଷାକ ନେବାକୁ ଚିନ୍ତା କରନ୍ତି, ସେମାନେ ଦେଖନ୍ତି ଯେ ପୋଷାକ ସ୍ଥାନରେ ନାହିଁ | ଏହା ଦେଖି ଗୋପୀମାନେ ଭୟଭୀତ ହୋଇ ଏଠାକୁ ଦେଖିବା ଆରମ୍ଭ କରନ୍ତି | ତା’ପରେ ତାଙ୍କ ଆଖି ଗଛ ଉପରେ ବସିଥିବା କୃଷ୍ଣଙ୍କ ଉପରେ ପଡିଗଲା ଏବଂ ସେ ବୁଝିପାରିଲେ ଯେ କାନହା ନିଶ୍ଚିତ ଭାବରେ ପୋଷାକ ଚୋରି କରିଥିବେ | ଏଭଳି ପରିସ୍ଥିତିରେ ସେ କାନହାଙ୍କୁ ପୋଷାକ ଫେରାଇବାକୁ ଅନୁରୋଧ କରିବା ଆରମ୍ଭ କରି ଦେଇଛନ୍ତି। ଗୋପୀମାନଙ୍କର ଏପରି ଅନୁରୋଧ କ୍ରମେ କୃଷ୍ଣ ସେମାନଙ୍କୁ ପାଣିରୁ ବାହାରକୁ ଆସି ପୋଷାକ ନେବାକୁ କହିଥିଲେ। ଏଥିପାଇଁ ଗୋପୀମାନେ କୁହନ୍ତି ଯେ ସେମାନେ ଉଲଗ୍ନ ପାଣିରୁ ବାହାରକୁ ଆସିବାକୁ ଲଜ୍ଜିତ।
କୃଷ୍ଣ ଗୋପୀମାନଙ୍କ ସହ କଥାବାର୍ତ୍ତା କରନ୍ତି ଯେ ସେ ବିନା ପୋଷାକରେ ପାଣିରେ ଗାଧୋଇବାକୁ ଲଜ୍ଜିତ ନୁହଁନ୍ତି। ଯେତେବେଳେ ସେମାନେ ପାଣି ଭିତରକୁ ଯିବାବେଳେ ବିନା ପୋଷାକରେ ରହିବେ | ଏହା ଉପରେ ଗୋପୀମାନେ କୁହନ୍ତି ଯେ ସେହି ସମୟରେ ଏଠାରେ କେହି ନଥିଲେ। ଗୋପୀମାନେ ଏହା କହିବା ମାତ୍ରେ କୃଷ୍ଣ ସେମାନଙ୍କୁ ବୁଝାନ୍ତି ଯେ ସେମାନେ କିପରି ଭାବିଥିଲେ ଯେ ଏଠାରେ କେହି ନାହାଁନ୍ତି | ଯେହେତୁ ମୁଁ ପ୍ରତ୍ୟେକ କଣିକାରେ ଉପସ୍ଥିତ | ଏହା ସହିତ, ଏଠାରେ ଚାରିପାଖରେ ପଶୁ, ଉଦ୍ଭିଦ, ପକ୍ଷୀ ଏବଂ ପ୍ରାଣୀ ଅଛନ୍ତି | ଅନ୍ୟ ପଟେ, ଜଳ ପ୍ରାଣୀମାନେ ତୁମକୁ ବିନା ପୋଷାକରେ ଦେଖିଛନ୍ତି ଏବଂ ଜଳର ଦେବତା ବରୁଣ ଦେବ ମଧ୍ୟ ତୁମକୁ ଦେଖୁଛନ୍ତି | ସେଥିପାଇଁ ଏହା ସମ୍ଭବ ନୁହେଁ ଯେ ନଗ୍ନ ସ୍ନାନ ସମୟରେ ଆପଣଙ୍କୁ କେହି ଦେଖି ନାହାଁନ୍ତି |
ଶ୍ରୀ କୃଷ୍ଣ ପୋଷାକ ଚୋରି କରି ଗୋପୀମାନଙ୍କୁ ମନାଇବା ପାଇଁ ଚେଷ୍ଟା କରନ୍ତି ଯେ ବିନା ପୋଷାକରେ ଗାଧୋଇବା ଉଚିତ୍ ନୁହେଁ | ଗାରୁନା ପୁରାଣରେ ଏହା ମଧ୍ୟ ଉଲ୍ଲେଖ କରାଯାଇଛି ଯେ ଆମର ପୂର୍ବପୁରୁଷମାନେ ସ୍ନାନ ସମୟରେ ଅଛନ୍ତି | ପିତୃପୁରୁଷମାନେ ସ୍ନାନ ସମୟରେ ପଡୁଥିବା ଜଳକୁ ନେଇ ସନ୍ତୁଷ୍ଟ ହୁଅନ୍ତି | ଯଦି ଜଣେ ବ୍ୟକ୍ତି ବିନା ପୋଷାକରେ ସ୍ନାନ କରନ୍ତି, ପୂର୍ବପୁରୁଷମାନେ ଅସନ୍ତୁଷ୍ଟ ରୁହନ୍ତି | ଏପରି ପରିସ୍ଥିତିରେ, ବ୍ୟକ୍ତିର ପୂର୍ବପୁରୁଷମାନେ ତାଙ୍କ ଉପରେ କ୍ରୋଧିତ ହୁଅନ୍ତି ଏବଂ ବ୍ୟକ୍ତିର ଧନ, ଅପାରଗତା, ଶକ୍ତି, ଉଜ୍ଜ୍ୱଳତା, ସୁଖ ସବୁ ଦୂର ହୋଇଯାଏ | ସେଥିପାଇଁ ଜଣେ କେବେବି ଉଲଗ୍ନ ସ୍ନାନ କରିବା ଉଚିତ୍ ନୁହେଁ |
Janmashtami 2022: जब नटखट कान्हा ने चुरा लिए थे गोपियों के वस्त्र, दिया था ये संदेश
द्वापर युग में जन्मे श्री कृष्ण ने अपने बाल्यकाल से ही अनेक लीलाएं दिखानी शुरू कर दी थीं। इन बाल लीलाओं का जिक्र अनेक पुस्तकों और पुराणों में मिल जाता है। यशोदा मैया के आंचल में पल रहे कृष्ण ने गोपियों और ग्वाल बालों संग अनेक बाल लीलाएं की। जिसके जरिए उन्होंने संदेश भी दिए। इन्हीं लीलाओं में से एक लीला कृष्ण द्वारा गोपियों के वस्त्र चुराने की भी है। नटखट कृष्ण ने गोपियों के वस्त्र चुराने के साथ उन्हें ज्ञान दिया था। जो चलिए जानें आखिर क्यों गोपियों के वस्त्र कृष्ण ने चुराए थे।
बाल्यकाल की तमाम लीलाओं में से एक लीला है गोपियों के वस्त्रों को चुराना। इस कथा का प्रसंग पद्म पुराण में मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है कि दैनिक दिनचर्या की भांति गोपियां एक दिन तालाब में स्नान करने के लिए एकत्रित हुईं और स्नान के लिए तालाब के जल में उतर गईं। भगवान कृष्ण पेड़ पर बैठे ये सारा दृश्य देख रहे थे। जब गोपियां स्नान करने में व्यस्त हो जाती हैं। तभी कृष्ण चुपके से नीचे उतरकर गोपियों के वस्त्र छुपा देते हैं।
जब गोपियां स्नान ने निवृत्त होती हैं और अपने कपड़े लेने की सोचती हैं तो देखती हैं कि वस्त्र स्थान पर नही हैं। यह देखकर गोपियां घबरा जाती हैं और यहां वहां देखने लगती हैं। तभी उनकी नजर पेड़ पर छुपकर बैठे कृष्ण पर पड़ती है और वो समझ जाती हैं कि जरूर वस्त्र कान्हा ने ही चुराएं होंगे। ऐसे में वो कान्हा से आग्रह करने लगती हैं कि वो वस्त्रों को वापस कर दें। गोपियों के ऐसे आग्रह पर कृष्ण उनसे जल से बाहर निकलकर वस्त्र लेने को कहते हैं। इस पर गोपियां कहती हैं कि उन्हें निर्वस्त्र जल से बाहर निकलने में लज्जा आती है।
कृष्ण गोपियों से संवाद करते हैं कि उन्हें जल में बिना वस्त्र के नहाने में लज्जा नही आई। जबकि वो जल में प्रवेश करते समय भी बिना वस्त्र के ही होगीं। इस पर गोपियां कहती हैं कि उस समय यहां पर कोई नही था। गोपियों के इतना कहते ही कृष्ण उन्हें समझाते हैं कि कैसे उन्होंने सोचा कि यहां पर कोई नही है। जबकि मैं तो हर कण में मौजूद हूं। इसके साथ ही यहां पर आसपास जीव-जंतू, पेड़-पौधे, पक्षी और पशु मौजूद हैं। वहीं जल के प्राणियों ने तो तुम सबको बिना वस्त्र के ही देखा है और स्वयं जल के देवता वरुण देव भी तुम्हें देख रहे हैं। इसलिए ऐसा संभव ही नही है कि निर्वस्त्र स्नान के दौरान तुम्हें किसी ने ना देखा हो।
श्रीकृष्ण गोपियों को वस्त्र चुराकर यहीं समझाने का प्रयास करते हैं कि बिना वस्त्र के स्नान नहीं करना चाहिए। इस बात का उल्लेख गरुण पुराण में भी मिलता है कि स्नान के समय हमारे पूर्वज आसपास ही होते हैं। स्नान के दौरान गिरने वाले जल को पूर्वज ग्रहण करते हैं और तृप्त होते हैं। अगर बिना वस्त्र के कोई मनुष्य स्नान करता है तो पूर्वज अतृप्त रह जाते हैं। ऐसे में व्यक्ति के पूर्वज उनसे रुष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति का धन, ऐश्वर्य, बल, तेज, सुख सब चला जाता है। इसलिए कभी भी निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए
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